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किन्नर का इंसाफ समाप्त भाग 7

जमींदार के दहशत भरे 10 दिन बीत जाते हैं और आखिर आ ही जाती है वो अमावस्या की रात.....जिसका जमींदार और तांत्रिक को इंतेजार था.....

अब शमशान घाट में चल रहा था तांत्रिक अनुष्ठान.....पचासों की संख्या में किन्नर वहां मौजूद थे जो जमींदार को बचाने आये थे उसकी पूजा को सफल बनाने की पूरी कोशिश में लगे थे सभी.....

इधर हवेली तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज रही थी.....
सौम्या(सरोज) के बताए अनुसार ही संदीप हवेली के चारो तरह सिंदूर से एक घेरा बना देता है.....

इधर शमशान में आज तालियों की गड़गड़ाहट गूंजती है.......तांत्रिक के मंत्रो के प्रभाव से हवेली में सरोज न चाहते हुए भी खुद को रोक नही पाती और पहुच जाती है गुर्राते हुए शमशान........ सौम्या के शमशान पहुचते ही सारे किन्नर तालियां बजाते हुये उसके चारों तरफ घूमने लगते हैं.......

सरोज एक किन्नर का गला पकड़ते हुए बोलती है तुम सब इसे बचाने आई हो जिसने मुझे सिर्फ इसलिए मार दिया क्योंकि मैं एक किन्नर हूँ......बचाओ इसे ताकि जो मेरे साथ हुआ वही और मुझ जैसे किन्नारों के साथ हो......
इतना सुनते ही सारे किन्नर शांत हो जाते हैं और वही शांत बैठ जाते हैं....


तांत्रिक चिल्लाते हुये किन्नारों को बोलता है तुम सभी तालियां बजाना चालू रखो पर किन्नारों की कोई प्रतिक्रिया नही होती.....
अब सरोज तालियां बजाना स्टार्ट कर देती है और हंसते हुए तांत्रिक की तरफ बढ़ती है.....
तांत्रिक की मन्त्र शक्तियों पर अब सरोज भारी पड़ने लगी.....
और जमींदार को उठा कर वही पर आधा जमीन में गाड़ देती है......


तांत्रिक अब और तेज - तेज मन्त्र पढ़ने लगता है और सरोज पर
शमशान  की राख फेकता है...... सरोज अब थोड़ी देर के लिए फिर कमजोर पड़ जाती है लेकिन कुछ ही देर में सरोज तांत्रिक पर आग के गोले फेकने लगती है,,,,,,,और तांत्रिक उन्ही आग के गोलों में जल कर भस्म हो जाता है.....


जमींदार अब सरोज से अपनी जान की भीख मांगता है और सरोज जोर जोर से हँसती है......सरोज जमींदार की तरफ आगे बढ़ती ही है और अचानक रुक जाती है......और कहती है तू अकेला मेरा गुनहगार नही है......
अब हंसी और चीखों  की आवाज शमशान में गूँजने लगती हैं तभी सुलेखा भी वहां आती है......
और जमींदार को देख - देख कर जोर - जोर से हँसती है जमींदार अब दोनो के सामने अपनी जान की भीख मांग रहा होता है,,,,,
पर दोनों जमींदार को देख देख कर हँसती हैं.....


और थोड़ी ही देर में जमींदार के शरीर के चीथड़े हवा में उड़ रहे होते हैं......एक बार पूरा शमशान तालियों की गड़गड़ाहट और हँसी से गूंजता है.......
संदीप राधिका को भी तांत्रिक की कैद से आजाद कर देता है......
और सभी आत्माएं मुस्कुराती हुई वहाँ से चली जाती है.....

सौम्या सुलेखा दोनो बेहोश होती हैं किन्नरों की मदद से संदीप दोनो को घर लेकर आता है और किन्नारों को सम्मान पूर्वक अलविदा कहता है......

जमींदार के मरने का गम किसी को भी नही था......न संदीप, सुलेखा न ही सौम्या,,,,,गाँव के लोग भी खुश हो रहे थे चलो जमींदार के अत्याचार से छुटकारा मिला.....

करीब 1 महीने बाद ही संदीप सौम्या और सुलेखा को लेकर अपने नए घर शहर चला जाता है.....

समाप्त

रोशनी शुक्ला


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